"हिन्दी" हमारी मातृ भाषा है, यह हमारे जीवन शैली का एक हिस्सा है | हमें इस पर गर्व है, यह हमारी राष्ट्रभाषा है, हम अपने दिल कि बात हिन्दी में ही व्यक्त करते है, कम से कम मैं तो यही सोचता हूँ | हाँ, यहाँ मैंने सिर्फ अपने आप को ही चिन्हित किया है, क्यूंकि जबसे मैं अमेरिका आया हूँ, कई हिन्दुस्तानी लोगों से मिला हूँ, ज्यादातर छात्र, छोटे बड़े सभी से मिला हूँ परन्तु जितनी बार मिला हूँ मुझे बड़ी तकलीफ हुई है | इसलिए नहीं कि कोई यहाँ पर मेरी मदद नहीं कर रहा, अपितु इसलिए कि जानभुझ कर यह सभी छात्र अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते है | मेरे कहने के और टोकने के बाद भी मुझसे अंग्रेजी में ही वार्तालाप करना पसंद करते है | जो मुझे न अच्छा लगता है और न ही उचित लगता है | यदि मुझे किसी अमेरिकी से बात करनी है तब तो मेरी मजबूरी है कि मैं उससे अंग्रेजी में बात करूँ , या चार अमेरिकियों के सामने हिन्दी का उपयोग करूँ, तो यह सभ्य नहीं लगता और न ही उन अमेरिकियों को हमारी भाषा समझ में आती है | उनसे अंग्रेजी में बात करना अनिवार्य है | परन्तु उनसे क्या अपेक्षा कि जाये जो भली भांति हिन्दी का उपयोग कर सकते है |
यहाँ अमेरिका में कई देशों के लोगों को देखा सुना बात करी | वह जब अपने देशवासिओं से मिलते है तो उन्ही कि भाषा का उपयोग करते है | मैंने यहाँ चीनियों को देखा, जापानियों को देखा और भी कई देशों के लोगों को देखा सब अपनी ही भाषा का उपयोग करते है | लेकिन जब आप किसी भारतीय से मिलें तो वोः तो पढ़े लिखे व्यक्ति होते हैं | आपसे अंग्रेजी में बात करके यह बताना चाहते है कि वोः वाकई में बड़े पढ़े लिखे है | हिन्दी में न जाने क्यूँ बात करना पसंद नहीं करते, कुछ कहेंगे नहीं बस सुनेंगे, आप हिन्दी में बात करेंगे और आपको जवाब अंग्रेजी में मिलेगा | ऐसा लगता है कि अपने आप को हिन्दुस्तानी बोलने में शर्म आती हो | खैर यह तो कहना मुश्किल है कि उन्हें शर्म आती है कि नहीं क्यूंकि हो सकता है मेरे नज़रिए में ही कुछ खोट होगी जो मुझे ऐसा लगता है | यहाँ जबसे आया हूँ अंग्रेजी में ही बात करनी पड़ती है, इन लोगों कि भाषा ही यही है | हिन्दी बोलने के लिए घर पर इन्टरनेट के जरिये ही बात हो पाती है |
पर बात मेरी और आपकी नहीं है, यह बात हमारे संस्कारों की हो गयी है | भारत में भी अंग्रेजी भाषा का इतना उपयोग होता है कि कोई क्या करे | उसमे कुछ बुराई नहीं है, क्यूंकि हम अपने दफ्तर में तो अंग्रेजी में बातकर लेते है, पर घर पर अपनी माँ को माँ ही बुलाते है, और बहिन हो बहिन | परन्तु हमारे चारों तरफ अंग्रेजी का ऐसा आभामंडल बन गया है कि हमें यह लगता है कि हम जब तक अंग्रेजी में बात नहीं करेंगे कोई हमें सुनेगा नहीं या मानेगा नहीं | कुछ हद तक ठीक भी है | पर प्रश्न यह है, कि क्या यह सही है | क्या हम अपनी भाषा का त्याग करके आगे बढ़ पाएंगे? आजकल माता पिता, दोस्त और यहाँ तक की शिक्षक भी अंग्रेजी में ही बात करने के लिए प्रेरित करते है| क्या यह हमारी भाषा का पतन नहीं है? मुझे लगता है कि शायद, मैं गलत हूँ, ऐसा कुछ भी नहीं है, परन्तु यहाँ अमेरिका में जब किसी देशवासी को देखता हूँ या मिलता हूँ तो लगता है शायद मेरी सोच छोटी है | हमारी "हिन्दी" भाषा इतनी विशाल है कि कुछ लोगों कि वजह से न तो उसक पतन होगा और न ही उसका अपमान | और रही बात आगे बढने की तो कवी इकबाल जी की पंक्तियाँ याद आती है "कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा" | इस लेख में कई जगह मैंने अपने अनुभव व्यक्त किये है जो जरुरी नहीं एकदम सही हो, परन्तु जो मुझे लगा वोः मैंने लिख दिया |
आप सभी लोगों का धन्यवाद् जिन्होंने मेरे लेख के बारे में टिपण्णी करी है या पढ़ा है | मै कोशिश करूँगा की अपने लेखन को थोडा और अच्छा बना सकूँ |
बात यह नहीं कि आपने लेख लिखा प्रशंसनीय तो ये बात है कि मातॄ भाषा पर लिखा जो मुझे बहुत पसन्द आया। गर्व की बात है कि हम हिन्दुस्तानी है। बधाई।
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