यह कविता कुछ यादों का संग्रह है जो दिल्ली में गाड़ी चलते समय मैंने अनुभव किया......
यह कविता भी मैंने गाड़ी चलाते हुए लिखी. कैसे लिखी यह मत पूछिए..... बस लिख दी...... !!
गाड़ी बहुत तेज चलती हो,
गाड़ी बहुत तेज चलती हो,
चलाने वालों की भी जान ले जाती हो|
लगाती हो gear 2nd का मगर,
लगाती हो gear 2nd का मगर,
स्पीड ५वे पे ले आती हो|
गाड़ी बहुत तेज चलती हो.....
ब्रेक लगाने के मौके होते है बहुत ज्यादा,
ब्रेक लगाने के मौके होते है बहुत ज्यादा,
लेकिन, बिना ब्रेक के ही सिग्नल पार कर जाती हो|
गाड़ी बहुत तेज चलती हो.....
रोका जो तुमको पुलिस वाले ने,
रोका जो तुमको पुलिस वाले ने,
पुलिस वाले की जान खा जाती हो|
गाड़ी बहुत तेज चलती हो.....
हमारी जो आँखें चार हुई,
हमारी जो आँखें चार हुई,
इतराकर accelerator दबाती हो|
गाड़ी बहुत तेज चलती हो.....
"KOOLZ"