Friday, October 30, 2009

हिंदी भाषा का उपयोग

"हिन्दी" हमारी मातृ भाषा है, यह हमारे जीवन शैली का एक हिस्सा है |  हमें इस पर गर्व है, यह हमारी राष्ट्रभाषा है, हम अपने दिल कि बात हिन्दी में ही व्यक्त करते है, कम से कम मैं तो यही सोचता हूँ | हाँ, यहाँ मैंने सिर्फ अपने आप को ही चिन्हित किया है, क्यूंकि जबसे मैं अमेरिका आया हूँ, कई हिन्दुस्तानी लोगों से मिला हूँ, ज्यादातर छात्र, छोटे बड़े सभी से मिला हूँ परन्तु जितनी बार मिला हूँ मुझे बड़ी तकलीफ हुई है | इसलिए नहीं कि कोई यहाँ पर मेरी मदद नहीं कर रहा, अपितु इसलिए कि जानभुझ कर यह सभी छात्र अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते है | मेरे कहने के और टोकने  के बाद भी मुझसे अंग्रेजी में ही वार्तालाप करना पसंद करते है | जो मुझे न अच्छा लगता है और न ही उचित लगता है | यदि मुझे किसी अमेरिकी से बात करनी है तब तो मेरी मजबूरी है कि मैं उससे अंग्रेजी में बात करूँ , या चार अमेरिकियों के सामने हिन्दी का उपयोग करूँ, तो यह सभ्य नहीं लगता और न ही उन अमेरिकियों को हमारी भाषा समझ में आती है | उनसे अंग्रेजी में बात करना अनिवार्य है | परन्तु उनसे क्या अपेक्षा कि जाये जो भली भांति हिन्दी का उपयोग कर सकते है |

यहाँ अमेरिका में कई देशों के लोगों को देखा सुना बात करी | वह जब अपने देशवासिओं से मिलते है तो उन्ही कि भाषा का उपयोग करते है |  मैंने यहाँ चीनियों को देखा, जापानियों को देखा और भी कई देशों के लोगों को देखा सब अपनी ही भाषा का उपयोग करते है | लेकिन जब आप किसी भारतीय से मिलें तो वोः तो पढ़े लिखे व्यक्ति होते हैं | आपसे अंग्रेजी में बात करके यह बताना चाहते है कि वोः वाकई में बड़े पढ़े लिखे है | हिन्दी में न जाने क्यूँ बात करना पसंद नहीं करते, कुछ कहेंगे नहीं बस सुनेंगे, आप हिन्दी में बात करेंगे और आपको जवाब अंग्रेजी में मिलेगा | ऐसा लगता है कि अपने आप को हिन्दुस्तानी बोलने में शर्म आती हो | खैर यह तो कहना मुश्किल है कि उन्हें शर्म आती है कि नहीं क्यूंकि हो सकता है मेरे नज़रिए में ही कुछ खोट होगी जो मुझे ऐसा लगता है | यहाँ जबसे आया हूँ अंग्रेजी में ही बात करनी पड़ती है,  इन लोगों कि भाषा ही यही है | हिन्दी बोलने के लिए घर पर इन्टरनेट के जरिये ही बात हो पाती है |

पर बात मेरी और आपकी नहीं है, यह बात हमारे संस्कारों की हो गयी है | भारत में भी अंग्रेजी भाषा का इतना उपयोग होता है कि कोई क्या करे | उसमे कुछ बुराई नहीं है, क्यूंकि हम अपने दफ्तर में तो अंग्रेजी में बातकर लेते है, पर घर पर अपनी माँ को माँ ही बुलाते है, और बहिन हो बहिन  |  परन्तु हमारे चारों तरफ अंग्रेजी का ऐसा आभामंडल बन गया है कि हमें यह लगता है कि हम जब तक अंग्रेजी में बात नहीं करेंगे कोई हमें सुनेगा नहीं या मानेगा नहीं | कुछ हद तक ठीक भी है | पर प्रश्न यह है, कि क्या यह सही है |  क्या हम अपनी भाषा का त्याग  करके आगे बढ़ पाएंगे?  आजकल माता पिता, दोस्त और यहाँ तक की शिक्षक भी अंग्रेजी में ही बात करने के लिए प्रेरित करते है| क्या यह हमारी भाषा का पतन नहीं है?  मुझे लगता है कि शायद, मैं गलत हूँ, ऐसा कुछ भी नहीं है, परन्तु यहाँ अमेरिका में जब किसी देशवासी को देखता हूँ या मिलता हूँ तो लगता है शायद मेरी सोच छोटी है | हमारी "हिन्दी" भाषा इतनी विशाल है कि कुछ लोगों कि वजह से न तो उसक पतन होगा और न ही उसका अपमान | और रही बात आगे बढने की तो कवी इकबाल जी की पंक्तियाँ याद आती है "कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा" | इस लेख में कई जगह मैंने अपने अनुभव व्यक्त किये है जो जरुरी नहीं एकदम सही हो, परन्तु जो मुझे लगा वोः मैंने लिख दिया |

आप सभी लोगों का धन्यवाद् जिन्होंने मेरे लेख के बारे में टिपण्णी करी है या पढ़ा है | मै कोशिश करूँगा की अपने लेखन को थोडा और अच्छा बना सकूँ |   

Sunday, October 25, 2009

कृष्ण.....

"जैसे मौत एक ख्याल है वैसे जिंदगी एक ख्याल है, न सुख है न दुःख है न दीन है न दुनिया, सिर्फ मैं हूँ, मैं हूँ, सिर्फ मैं | " ये पंक्तियाँ हिंदी फिल्म गाइड से ली हुई है, फिल्म में तो वैसे बहुत कुछ है, पर मुझे सबसे ज्यादा यही पसंद आती है | कृष्ण, कौन है ये, एक नाम, या कोई भगवान, या कोई विचारक, जिसके विचार सारी दुनिया में चर्चित है|  सबका अपना अपना मानना है, मैंने कृष्ण को कई रूप में देखा है, नहीं नहीं इसका मतलब ये नहीं की मैंने उन्हें वास्तविक्ता में देखा है, मैंने उन्हें भारत में कई पहलुओं में देखा है | कोई उनको भगवान मानके पूजता है तो कोई अपना अब कुछ मान के, कोई उनके विचारों को पत्थर की लकीर मानता है तो कोई उन्हें मार्गदर्शक कहता है| कहते है की उनके करोड़ नाम है, पता तो मुझे भी नहीं है, परन्तु मेरे लिए कृष्ण एक विचार है | जिसके बारे में जितना चिंतन करो उतना कम है | मैं कई बार सोचता हूँ, कि क्या वास्तविक्ता में कोई ऐसा रहा होगा, अगर होगा तो क्या ये सब सच रहा होगा जो हम बचपन से सुनते आये है ?? या किसी विद्वान का काल्पनिक पात्र है कृष्ण | क्या ये आत्मा का विचार सही है ? क्या हम बार बार जन्म लेते है ? मुझे नहीं पता और मुश्किल बात यह है कि मैं इस जन्म में तो यह नहीं जान पाउँगा | 
 
लेकिन कृष्ण के विचार कर्म के बारे में बड़े सही लगते है, कि यदि कर्म करो तो ही मैं मिलूँगा, मैं से मतलब कृष्ण से है, और वैसे भी उन्होंने अपने आप को सबकुछ बताया है | तो सोचने वाली बात यह है कि यदि आप कर्म करो तो आपको सच में सबकुछ मिलता है| हालाकि, यह बात १००फि सदी सच नहीं मानी जा सकती पर कुछ तो सत्यता है ही | परन्तु यहाँ एक और बड़ा अजीब विचार है, निष्काम कर्म का, मुझे समझ नहीं आता कि जब तक आज कि दुनिया में किसी को किसी से काम न हो तो वह काम ही क्यों करेगा | जब तक कर्म में स्वार्थ लीन न हो तो कोई भी कर्म कैसे कर सकता है | बिना स्वार्थ के तो कोई पानी भी नहीं पूछता, आजकल तो पानी कि बोतल भी पैसा दे कर ही ली जा सकती है| शायद यह विचार उस समय के हिसाब से सही रहा होगा | परन्तु बात घूम फिर के वही आती है, किस समय के? यह गीता पाठ किसने लिखा, क्या बोले हुए शब्दों और उसके लिखित स्वरुप में कोई फर्क नहीं रहा होगा? अगर मैं यह मानू भी कि यह सब कृष्ण ने कहा, परन्तु मेरा प्रश्न यह है कि उसे लिखा किसने? क्यूंकि वेद व्यास जी ने भी सिर्फ कह कर ही सारी महाभारत गणेश जी से लिखवाई थी | गणेश जी का भी कोई वास्तविक स्वरुप नहीं है|
 
मैं अपने आप को इतना विद्वान या विचारक नहीं समझता कि कृष्ण या उनके विचारों कि आलोचना कर सकूँ, परन्तु यह मेरे छोटे दिमाग कि छोटी सी दुविधा है कि मैं कृष्ण को क्या मानू |  भगवान, तारनहार या कोई बहुत बड़ा विद्वान या सबकुछ | विचार सबके अलग अलग हो सकते है, परन्तु मैं कृष्ण को अपना वैचारिक मित्र मानता हूँ | जब भी मैं उदास होता हूँ या परेशान होता हूँ, मैं कृष्ण के बारे में सोचने लगता हूँ, उनके विचारों के बारे में मंत्रणा करता हूँ | उनके विचारों से प्रेरित भी होता हूँ और उनको गलत भी कहता हूँ | मैंने कभी कृष्ण को नहीं देखा, न मैं बहुत बड़ा विद्वान हूँ | मैं सिर्फ कृष्ण नाम से उत्तेजित होता हूँ, उनके बारे में बात करना अच्छा लगता है, अगर इसी को भक्ति कहते है तो आप ये भी कह सकते है कि मैं कृष्ण का भक्त हूँ, परन्तु मैं पूजा पाठ ज्यादा नहीं करता | बस यही मानता हूँ कि यदि कृष्ण नाम कि कोई शक्ति यहाँ है तो हे कृष्ण! मेरे सारथि बन जाइये, मुझे सही राह दिखाइए |
 
मैं नहीं जानता इन बातों को कितने लोग पड़ेंगे और क्या समझेगे पर मैं इतना जानता हूँ कि कम से कम अपने विचार मैं यहाँ बे झिझक रख सकता हूँ | कृष्ण के बारे में कई और लोगों ने कई अच्छी बात कही होगी और कहते भी होगे परन्तु मैं यहाँ कृष्ण के विचारों के बारे सोच रहा हूँ| जानता हूँ कि कृष्ण मेरी समझ के परे है, इसीलिए उन्ही से कहता हूँ कि    "हे कृष्ण!! मेरे सारथि बन जाइये, क्यूंकि यदि आप मेरे सारथि बने तो मेरा रथ कभी गलत राह नहीं जायेगा |"

Saturday, October 24, 2009

My Days in USA.....

Its 6:30 AM in morning. I have not slept whole night, what I was doing? I don't know. Probably trying to figure out how I can survive without friends and relatives in an absolutely alienated environment. This blog is just my attempt, to make myself contended, that probably someone somewhere will read this post. I don't know, whether somebody will do so or not, but I'll be happy. That is why I named this blog as " नर हो, न निराश करो मन को". Whenever I feel depressed or annoyed or low, I usually try to start something new, this blog is an experiment. I'll try to put my feelings opinions and views here. I am not a good writer, so I may not be able to do miracles through my blog. I am not expecting that as well, because I am not Amitabh Bacchan. What am I writing here, I don't know, I have not planned for this blog, it was just instinct that I choose to write a blog rather than listening to music or watching videos on Internet. Well, let me tell you about myself, I am a graduate student of Construction Management in University of Washington Seattle. And I had done my Bachelors from IPS Academy Indore, India. I am an Architect, by profession. Well I have not worked as an Architect yet, my friends and relatives and people who know me thinks that I practiced and worked as an Architect, than they ae wrong. I tried to become an Architect, but I don't think so, that I have that attitude to be an Architect. Its the attitude, not creativity. In my thought, creativity is subjective and you cannot judge any body's creativity through his/her no. of sheets or presentation techniques. Its a virtue that all of us are blessed with, difference is to understand it. Those who understands it, are called genius and those who don't are called you suck!!

Ask about me, than I am not a genius nor I am sucker, I am just confused. I can sing, dance, play sports, act and think, so the basic problem is I don't understand where should I go? I always try to achieve things which everybody tells me "Come on u have other options, choose that." I always done things which my heart told me to do. I really cant analyze through my mind, its my heart that always told me the way. And I followed it blind folded, I lost sometimes, I won sometimes but its equivalent. Whenever I lost, I lost because of my most dear friends, they use took me to cliff blindfolded and pushed from their for a free fall......... Every time I was hurt, bruised and terrified but each time I stood up and climbed the cliff again to believe that I can climb that cliff blindfolded without my friends or any support.
I am not pointing anything to anybody, its just the way I am .

I think that I am wrong, somewhere, but I know I cant understand that right now. I'll know about that, when time comes, so no worries and no tensions. Oh..... its 7:00 Am and still I am fresh as in the morning. So, in case anybody reads this blog, please provide your suggestions. I'll try to incorporate, about blog.